मैं चुप हूँ आज तक,अब बोल दूँ क्या।
मैं सारे राज़ तेरे खोल दूँ क्या।
बहुत हँसता था मेरी मुफ़लिसी पर,
बता तुझ को मैं अब कशकोल दूँ क्या।
बहुत दिलकश अदाकारी है तेरी,
तुझे पिक्चर में कोइ रोल दूँ क्या।
अभी खुल जायेगी तेरी हक़ीक़त,
मैं अपनी बंद मुट्ठी खोल दूँ क्या।
बहुत परवाज़ पर है इन दिनों तू,
परों को मैं भी अपने खोल दूँ क्या।
तेरी अफ़वाह में वो दम कहाँ अब,
असर के वास्ते इक ढोल दूँ क्या।
नदीम उस पर बहुत हैं फ़ख़्र तुम को,
तुम्हारी बंद आँखें खोल दूँ क्या
नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर।