राजमहल का स्वप्न जो देखा,आंखों को वनवास मिला

सम्मानों के प्रत्युत्तर में

जग से बस उपहास मिला।

जिनको छप्पन भोग लगाया  

उनसे भी उपवास मिला।

हर युग में अपने हिस्से तक सबने बस मुझको चाहा,

राजमहल का स्वप्न जो देखा

आंखों को वनवास मिला।

शोकसिंधु के तट पे आकर कबतक शोक मनायें।

कितने गीत लिखें हम तुम पर कितना तुमको गायें।

संघर्षों की पर्णकुटी में 

व्यवधानों ने शयन किए।

द्वार निराशित दीप जलाकर 

आशाओं पर मनन किए।

पितृ वचन का वल्कल ओढ़े जंगल जंगल भटक रहे,

मर्यादाएं पुरषोत्तम कर  

इच्छाओं का हनन किए।

स्वर्ण हिरण के लोभ में आकर कबतक अश्रु बहाएं।

कितने गीत लिखें हम तुम पर कितना तुमको गायें।

रिश्तों ने पथराव किया तो

प्रीति की मटकी फूट गई।

तन गठबंधन हुईं रुक्मिणी

मन की राधा छूट गई।

शक्ति-प्रदर्शन करते करते प्रणय निर्वहन नहीं हुआ,

जहां सुदर्शन किया निमंत्रित

वहीं बाॅसुरी टूट गईं।

टूटे बिखरे पुष्प पिरोकर कबतक कंठ सजायें। 

कितने गीत लिखें हम तुम पर कितना तुमको गायें।

अंतर्मन के समरांगण में

जाने कितने युद्ध हुए।

भोगविलासी जीवन जी कर

बन संन्यासी शुद्ध हुए।

यशोधरा की पीड़ाओं ने जब जब आकर दुत्कारा,

तब तब लज्जित होकर गौतम

खुद से निकले बुद्ध हुए।

जीवन के इस रंगमंच पर कबतक स्वांग रचायें।

कितने गीत लिखें हम तुम पर कितना तुमको गायें।

Sameer TiwarI

बस्ती उत्तर प्रदेश

9455568837

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