सब कुछ खोकर भी नहीं,पाया जीवन खास

सब कुछ खोकर भी नहीं,पाया जीवन खास।

अपने सारे दूर हैं,रहा न कोई पास।।

जीवन में ऐसा लगे,गया कहीं कुछ छूट।

जाये भी तो हम कहांँ, नेह गए जो टूट।।

दुनिया दारी की नहीं, मुझे समझ है यार।

चले गए सब छोड़ कर,सून लगे संसार।।

माना था अपना जिसे,वही हुआ है दूर।

कैसे आए बोलिए,चेहरे पर अब नूर।।

अपनाया था पर अलग,उसने कर ली राह।

अब पग पग पर शूल हैं,मुख से निकले आह।।

स्वप्न अधूरे सब रहे,टूट गई हर आस।

अब तो चाहत हो गई,कब छूटे ये श्वास।।

मेरे मन की पीर की ,मीत न समझे रीति।

नीर बहाते नैन हैं,कहांँ गई वह प्रीति।।

तुम्हीं सुना दो सांँवरे,बंसी की वह तान।

कुछ तो होगी पीर कम,देख मधुर मुस्कान।।

तुम में बसते सांँवरे,अब तो मेरे प्राण।

पास बुलाओ तुम मुझे,हो जाए कल्याण।।

उथल-पुथल सी मच रही,तन-

मन में है शोर।

राह लगें सारी कठिन,जाऊंँ मैं किस ओर।।

अंजना सिन्हा “सखी “

रायगढ़

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